भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसके कारण ही विश्व में आने वाली विभिन्न आर्थिक-समस्याओं के बावजूद भी देश के सतत् विकास को बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान करने की क्षमता है। विकट परिस्थितियों में भी कृषि देश को खाद्यान्न संकट से बचाने एवं लाखों लोगो के लिए एक रोजगार परक व्यवसाय हैं। विगत कुछ दशकों से गाँवों की युवा आबादी का बहुत ज्यादा पलायन देश के बडे़ शहरों की तरफ हुआ। इसके दौरान शहरीकरण एवं गाँवों की अर्थव्यवस्था में बहुत से बदलाव देखने को मिले। ग्रामीण परिवेश की युवा आबादी का शहरों की तरफ पलायन से गाँवों की कृषि एवं पशुपालन व्यवसाय में गिरावट देखने को मिली है। किन्तु वर्ष 2019 में विश्व के देशों में कोरोना माहामारी के कारण शहरों की औद्योगिक ईकाईयों का बंद होना एव अन्य रोजगार के साधन में कमी होने के कारण, फिर भारतीय अर्थव्यवस्था को ग्रामीण भारत के कृषि एवं पशुपालन व्यवसाय से चलाने में काफी मदद मिली। भारत सरकार ने इस विश्वव्यापी माहामारी से यह महसूस किया कि आने वाले समय में भारत देश को आत्मनिर्भर बनना होगा। भारत देश में शहरीकरण के कारण बहुत संख्या में युवा आबादी का आर्थिक स्तर पर सुदृढ विकास हुआ है तथा विगत 5 से 7 वर्ष के अन्दर से देश की शिक्षित तथा वैज्ञानिक सोच के कारण बहुत से कृषि एवं पशुपालन आधारित स्टार्ट-अप व्यवसाय का विकास हो रहा है। जिसमें देश के प्रसिद्ध सरकारी संस्थानों से प्रशिक्षित युवाओं ने भविष्य की आवश्यकताओं के अनुसार वैज्ञानिक पद्धति से खेती, सब्जियों, फलों, फूलों एवं विभिन्न पशुधन आधारित डेयरी एवं माँस के लिए पशुपालन ईकाईयों की स्थापना की है। जिससे देश के बडे शहरों एवं आसपास के कस्बों में शुद्ध ताजा कृषि एवं पशुपालन उत्पादों की उपलब्धता बढ़ी है तथा उसका सीधा उपभोक्ताओं को लाभ मिल रहा हैै। हमारे देश में व्यापारियों, उन्नतिशील युवा उद्यमीयों एवं आर्थिक रूप से सक्षम भारतीय किसानों ने शहरों एवं राजमार्गो के पास वाली कृषि भूमि पर खेती एवं पशुपालन आधारित स्टार्ट-अप स्थापित करने से गाॅवों के लोगों को रोजगार मिलने लगा है। केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर ने भी देश के विभिन्न राज्यों के पशुपालकोे, युवा एन्टरप्रोन्योर एवं शहरी उद्यमियों का बडे शहरों के पास वैज्ञानिक पद्धति से भेड़पालन व्यवसाय को स्थापित करने में बहुत मदद की है। संस्थान के द्वारा विकसित बहुप्रज अविशान भेड़ के पालन के लिए बहुत से युवा उद्यमि संस्थान से अविशान भेड़ ईकाई के लिए इच्छुक हैं। वर्षभर किसानों के द्वारा अविशान भेड़ की ईकाई स्थापना के आवेदन संस्थान को प्राप्त होते रहते है। देश की 20वीं पशुधन जनगणना 2019 से यह ज्ञात होता है कि भारत में कुल भेड़ों की आबादी में पिछली 19वीं जनगणना 2012 से 14.1 प्रतिशत के करीब बढोत्तरी दर्ज की गई है (65.07 से 74.26 मिलियन) तथा 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार 13.87 प्रतिशत के करीब आबादी भेड़ो की है। 20वीं जनगणना में भेड़ो की आबादी बढने में मुख्य योगदान दक्षिण भारतीय राज्यों तेलंगाना, आन्ध्रप्रदेश एवं कर्नाटक में भेड़पालन के प्रति बढती रूचि के कारण हुई है। उपरोक्त राज्यों ने व्यापारिक स्तर पर स्टाॅल फीड आधारित भेड़पालन के स्र्टाट-अप शुरू किये गये हैं। जिसमें अविशान भेड़ की बहुत ज्यादा मांग आ रही है।
अविशान भेड़ की महत्वतता
हमारे देश में विगत कुछ दशकों से भेड़पालन का व्यवसाय ऊन की बजाय मास की पैदावार के लिए तेजी से बदल रहा हैं। क्योंकि भेड़पालक किसानों को मुख्य आमदनी मेमने के पालन एवं शारीरिक भार के आधार पर माँस के लिए मेमनों की बिक्री पर ही प्राप्त होती है। जबकि ऊन के लिए भेड़पालन व्यवसाय नगण्य सा हो गया है। क्योंकि भेड़पालकों को भेड़ की ऊन की कम माँग एवं कम कीमत के कारण ऊन कतरने के भी पैसे मिलना मुश्किल हो रहा है
(Sharma et al., 2016)। हमारे देश की बढती आबादी एवं उसके माँस खाने की आदत में बहुत बढ़ोतरी हुई है। अभी देश में भेड़पालन से केवल 8.36 प्रतिशत कुल माँस का उत्पादन होता है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की सलाह अनुसार हर व्यक्ति को प्रतिदिन 30 ग्राम माँस लेना चाहिए। इस प्रकार हर व्यक्ति को सालभर में 10.95 किलोग्राम माँस उपलब्ध होना चाहिए। जबकि वर्तमान में देश के पास करीब 5.5 किलोग्राम प्रति व्यक्ति माँस की पैदावार सालभर में उपलब्ध है। इसलिए देश में माँस की माँग एवं वर्तमान उपलब्धतता में बड़ा अन्तर है
(Sharma et al., 2016) जो कि भविष्य में साल दर साल बढोतरी होने की संभावना हैं। इसलिए वर्तमान समय की मांग को देखते हुए भेड़पालन में नई तकनीक से पैदावार को बढाना जरूरी हैं। साथ में भेड़पालन में होने वाली बीमारियों एवं मृत्यु दर को भी कम करना जरूरी है। इसलिए भेड़पालन के लिए वैज्ञानिक तरीके से प्रजनन, पशु पोषण, स्वास्थ्य एवं प्रबन्धन गतिविधियों में सुधार करना अत्यन्त जरूरी हैं। भेड़पालन के व्यवसाय को सीमित संसाधनों के साथ लाभकारी एवं अधिकतम पैदावार लेने के लिए उसके बहुप्रजनकता (प्रोलीफिकेसी) गुण मे सुधार करना जरूरी हैं जिससे प्रति भेड़ ज्यादा पैदावार ली जा सके। संस्थान के वैज्ञानिको के प्रयासों से विकसित अविशान भेड़ के पालन से भेड़पालक को एक ब्यात में एक भेड़ से दो, तीन या चार मेमने प्राप्त किये जा सकते है। इस प्रकार भेड़़पालक सीमित संसाधनों मे अविशान भेड़ के पालन से देशी नस्लों की अपेक्षा 50 से 60 प्रतिशत अतिरिक्त मेमने प्राप्त कर सकता है। अविशान भेड़ भारत देश की तीन देशी नस्लों (मालपुरा, गैरोल एवं पाटनवाड़ी) के क्राॅस-ब्रिडिगं से संस्थान के अथक प्रयास से 18 वर्ष में तैयार की गई है। अविशान भेड़ में गैरोल नस्ल में पाई जाने वाली फेकबी जीन के कारण प्रति ब्यात में दो, तीन या चार मेमने पैदा करने का गुण का समावेश हुआ हैं। इस प्रकार भेड़़पालक किसान के सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार किया जा सकता है
(Kumar et al., 2021)।
बहुप्रज गुण
अविशान भेड़ में एक से ज्यादा मेमने पैदा करने की दर 74 प्रतिशत के करीब पाई जाती है। इसी प्रकार अविशान भेड़ की प्रति ब्यात मेमने देने की क्षमता (लीटर साइज) 1.7 से 1.8 के करीब आता है। जो कि भारत देश की अन्य भेड़ की नस्लों का लीटर साइज 1.03 के करीब होता है। क्योंकि अधिकतर मादा भेड़ एक ब्यात में एक ही मेमने को पैदा करती है। भारत देश में केवल दो भेड़़ की नस्लें गैरोल एवं केन्द्रापाडा में ही लीटर साइज 1.7-1.8 के करीब होता है। केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान ने पश्चिम बंगाल में पाई जाने वाली गैरोल भेड़ की नस्ल से बहुप्रजनन के लिए जिम्मेदार जीन (फेकबी) का समाकलन कृत्रिम गर्भाधान विधि द्धारा मालपुरा भेड़ की नस्ल मेें किया गया। अविशान भेड़ की एक से ज्यादा मैमने पैदा करने की क्षमता (74 प्रतिशत) एंव 1.8 के करीब लीटर साइज के कारण भविष्य में बढ़ती माँस की माँगों को पूरा करने के लिए कम भेड़ों से ही अधिक माँस की प्राप्ति सुनिश्चत किया जा सकेगा। वर्तमान समय में घटते सार्वजनिक चरागााह एवं खनाबदोश चराई के कारण भेड़पालक व्यवसाय अब उसके सघन चराई आधारित व्यवसाय में बढ़ता जा रहा है। भविष्य की माँग एवं जरूरत को काफी हद तक पूरा करने में अविशान भेड़ का पालन एक अच्छा स्र्टाट-अप व्यवसाय हो सकता है।
फेकबी जीन के जीन प्रारूप की पहचान
संस्थान एवं संस्थान के गोद लिये भेड़़पालकों के रेवड में अविशान भेड से पैदा हुए मेमने की फेकबी जीन की पहचान संस्थान निशुल्क करता है। किन्तु देश के अन्य राज्यों के प्रगतिशील भेड़पालक किसान भी उनके अविशान भेड़ या बहुप्रज भेड़ के क्रास से पैदा होने वाले मेमनें की फेकबी जीन की जाँच 1200 रूपये प्रति सैम्पल की दर से संस्थान की प्रयोगशाला में करा सकते है। कश्मीर एवं कर्नाटक राज्यों के बहुप्रज भेड़पालक किसानों को संस्थान ने फेकबी जीन की जाँच सुविधा उपलब्ध करवाई गई है। फेकबी जीन की पहचान किसी भी भेड़ की नस्ल में रक्त की कोशिकाओं से जीनोमिक डीएनए निकालकर एक दिन में मोलीकुलर प्रयोगशाला में की जा सकती है
(Jyotsana et al., 2017)। फेकबी जीन के आवश्यक जीनप्रारूप (जीनोटाइप) के आधार पर भेड़ के रेवड में फेकबी जीन का समावेश करा सकते है।
प्रजनन
अविशान भेड़ की प्रजनन क्षमता सन्तोषप्रद पाई गई है। अविशान मादा भेड़ 92 से 100 प्रतिशत के करीब अच्छी गुणवता के अविशान नर से ग्याभिन हो जाती हैं और 5 माह के गर्भकाल को पूरा करने के बाद मादा 90 से 99.2 प्रतिशत के करीब ग्याभिन भेड़े स्वस्थ मेमनों को जन्म देती है। अविशान भेड़ से 7 से 8 वर्ष की आयु तक मेमने प्राप्त किये जा सकते है। अविशान भेड़ से 17-18 माह की आयु में पहली पैदावार ली जा सकती है।
शारीरिक भार में वृद्धि
भेड़पालक किसान की कमाई नर मेमनों की शारीरिक भार में वृद्धि पर निर्भर करती हैं। अविशान के मेमनों का औसत शारीरिक भार जन्म के समय, 3 माह, 6 माह एवं 12 माह की आयु में क्रमशः 2.5, 14.8, 23.5 एवं 31 किलोग्राम के करीब हो जाता है। जो बाजार भार में 250 रूपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से वर्ष में कभी भी एवं किसी भी जगह बेचा जा सकता है। इस कारण भेड़पालन को एटीएम की तरह जाना जाता है। अविशान भेड़ में एक ब्यात में एक से ज्यादा मेमने प्राप्त होने के कारण प्रति मादा भेड़ ज्यादा शारीरिक भार मेमनों का प्राप्त कर सकते है। अविशान भेड़ को अन्य देशी नस्ल की भेड़ की अपेक्षा डेढ़ से दोगुनी मेंमनों होने के कारण ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है।
मादा भेड़ की उत्पादन क्षमता (ईव प्रोट्क्टविटी एफीसिएंसी)
प्रत्येक मादा अविशान भेड़ से ज्यादा से ज्यादा मेमनें प्राप्त किये जा सकते है। स्थानीय मालपुरा भेड़ की तुलना में अविशान भेड़ के मेमनों के पालन से तीन माह की आयु पर 22.19 किलोग्राम वजन औसतन मादा भेड़ से लिया जा सकता है। जबकि मालपुरा भेड़ से 3 माह पर मेमनों का औसतन शरीरिक भार 15.30 किलोग्राम था। इस प्रकार से अविशान भेड़ की उत्पादन क्षमता मालपुरा देशी नस्ल की अपेक्षाकृत 45 प्रतिशत ज्यादा है। अविशान भेड़ के मेमनों के जन्म भार का मालपुरा भेड़़ के मेमनों के जन्मभार से 25 प्रतिशत ज्यादा मादा उत्पादन क्षमता पाई गई। अतः अविशान भेड़ का पालन चराई एवं दाना या पूर्णत स्टाॅल फीडिगं पर लाभकारी व्यवसाय है जिससे गाँवो के आत्मनिर्भर सपनों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सीमित प्राकृतिक संसाधनों के साथ कम मादा भेड़ के पालन से प्रति ब्यात ज्यादा मेमनें प्राप्त किये जा सकते हैं जो देश की बढ़ती माँस की माँग को पूरा करने में महत्वपूर्ण व्यवसाय बन सकता है।
औसत दूध
मादा भेड़ के दूध की मात्रा पर भेड़ के मेमनों का पालन पोषण बहुत निर्भर करता है। मालपुरा नस्ल की भेड़ के औसतन दुध बसंत ऋतु में 473.4 ग्राम पाया गया। वर्तमान में अविशान भेड़ का औसत कुल दूध की प्राप्ति 800 ग्राम प्रति दिन होता है। जोकि
(Prakash et al., 2019) (दूध की प्राप्ति 672 ग्राम प्रति दिन) के परिणाम की तुलना में ज्यादा है। अत अविशान भेड़ के दूध की मात्रा
(Prakash et al., 2019) के अध्ययन की तुलना में सुधार हुआ है। अविशान भेड़ की दैनिक कुल दूध का उत्पादन उसके दो मेमनों के शुरूआत तीन माह के लिए पर्याप्त है। जो नये मेमनों की उतरजीविता, प्रतिरक्षा तंत्र एवं शारीरिक भार में वृद्धि करने में सहायक हैं। अपितु अविशान भेड़ से प्राप्त तीन या चार मेमनों को शुरूआत के 2 महीने तक दूसरी मां का दूध पिलाना पड़ता है, क्योंकि तीन या चार मेमनों की मादा के सभी मेमनों के लिए पर्याप्त दूध नहीं हो पाता है तथा मां के दूध के लिए ज्यादा स्वस्थ मेमना ही ज्यादातर दूध पी जाता है। बाकि के मेमनों के लिए पर्याप्त दुध नहीं रहता हैं। अविशान भेड़ के अतिरिक्त मेमनों (तीन या चार) के जीवित एवं बढिया शारीरिक भार के लिए दुध की बोतल से भेड या बकरी का दूध दिन में 2 से 3 बार पिलाया जा सकता है। जिससे अविशान भेड़ से प्राप्त सभी मेमनों को बचाया जा सके। अविशान भेड़ में मेमनों के प्रथम माह में औसत दुध की प्राप्ति दूसरे एवं तीसरे महीने की अपेक्षा ज्यादा रहती है। इसी प्रकार अविशान की मादा भेड़ की औसत दूध का उत्पादन पहले ब्यात की अपेक्षा दूसरे या तीसरे ब्यात में ज्यादा रहता है। अविशान एक बहुप्रज भेड़ है जिसके कारण उसके दुध की माँग उससे पैदा होने वाली संतति के लिए बहुत आवश्यक है। अविशान भेड़ की दूध भी बकरी की तरह बहुत पौष्टिक, सुपांच्य एवं स्वास्थ्यवर्धक होता है। अविशान भेड़़ के दूध में भी बकरी के दूध की तरह केसीन प्रोटीन एवं अन्य प्रोटीन पाये जाते है
(Meena et al., 2020 and 2021)।
उतरजीविता
उत्तरजीविता किसी जलवायु एवं प्रबन्धन में उतरजीविता बहुत ही महत्वपूर्ण कारक हैं। तीन माह से ज्यादा आयु के अविशान मेमनों की उतरजीविता 95-98 प्रतिशत हर साल रहता है। जबकि छोटे नवजात मेमनों की उतरजीविता 93 से 99 प्रतिशत के करीब आती है। अविशान भेड़ का पालन देश की अन्य देशी नस्लों की अपेक्षा ज्यादा संसाधनों (चारा एवं दाने) की जरूरत होती है। क्योंकि एक से ज्यादा मेमनों की प्राप्ति के लिए मादा अविशान भेड़ की गर्भकाल के दौरान अच्छा पोषण प्रबन्धन से जन्म के समय पैदा होने वाले मेमनों का जन्मभार अच्छा रहता है। जो पैदा हुये मेमनों की उतरजीविता एवं शारीरिक भार में बहुत महत्वपूर्ण योगदान निभाता है। अविशान भेड़ से semi-intensive एवं नजदीक फील्ड की चराई पर ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता है।